
Olaf Scholz’s Visit to India
दुनिया में सभी जो इंपॉर्टेंट कंट्रीज है वो इंडिया को किसी ना किसी टाइप का स्पेशल स्टेटस दे रहे हैं। पीएम मोदी ने रिसेंटली BRICS 2024 का समिट अटेंड किया है जो बहुत ज्यादा सक्सेसफुल रहा। चाइना के साथ काफी पॉजिटिव बातें भी हुई। पीएम मोदी वापस जैसे ही भारत आते हैं उसी वक्त भारत आते हैं Olaf Scholz जो जर्मनी के चांसलर है। आप कह लीजिए जर्मनी के प्रधानमंत्री हैं। हालांकि प्रधानमंत्री टाइटल जर्मनी में यूज़ नहीं किया जाता है। Olaf Scholz भारत में एक ऐसे समय आ रहे हैं जब जर्मनी ने भारत को एक स्पेशल स्टेटस दे दिया है। मिलिट्री परचेज के मामले में जर्मनी ने यह कहा है कि दुनिया में बहुत ही लिमिटेड कंट्रीज हैं जिनको जर्मनी अपनी बहुत ज्यादा सोफिस्टिकेटेड मिलिट्री टेक्नोलॉजी एक्सपोर्ट करता है। अब भारत उन कंट्रीज में आ चुका है इतना ही नहीं जर्मनी के चांसलर Olaf Scholz को एक उम्मीद यह भी है कि भारत के साथ मिलिट्री लॉजिस्टिक्स पैक्ट भी साइन हो जाए।
मिलिट्री लॉजिस्टिक्स पैक्ट, एक ऐसा पैक्ट है जिसके अंदर जर्मन मिलिट्री इंडिया के मिलिट्री बेसेस यूज कर सकती है रिफ्यूलिंग रिपेयर या फिर डॉकिंग पर्पसस के लिए। इंडिया ने इस तरह का लॉजिस्टिक्स पैक्ट यूएसए के साथ साइन कर रखा है। भारत ने ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस, सिंगापुर और साउथ कोरिया के साथ यह लॉजिस्टिक्स पैक्ट साइन कर रखा है।काफी बार यूएस नेवी की शिप्स इंडिया में डॉक करती भी है। इस पैट के अंदर जो यूएस, फ्रांस कर रहा है जर्मनी चाहता है कि जर्मन नेवी भी करें।
इंडो पैसिफिक का एक्सेस अगर जर्मनी को चाहिए तो उसके लिए इंडिया के साथ मिलिट्री लॉजिस्टिक्स पैक्ट होना बहुत ही ज्यादा इंपॉर्टेंट है और अगर आप सोच रहे हैं, इनके आने का मेन कारण यही है, तो नहीं, मेन रीजन है सबमरीन डील। भारत को छह डीजल इलेक्ट्रिक सबमरींस चाहिए।
Indo-German submarine deal and project P75I
जर्मनी एपीआई टेक्नोलॉजी को इंक्लूड करके इंडिया के साथ इलेक्ट्रिक सबमरींस बिल्ड करना चाहता है। जर्मनी चाहता है कि भारत का प्रोजेक्ट 75I है जो 5.8 बिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट है। छै सबमरींस इंडिया इस प्रोजेक्ट के अंडर बनाना चाहता है। जर्मनी चाहता है कि यह पूरा प्रोजेक्ट जर्मनी को मिल जाए और इस प्रोजेक्ट के लिए यूरोप के दो बड़े देश आपस में कंपीट कर रहे हैं। एक जर्मनी दूसरा देश स्पेन।
इंडिया के जो ट्रेड रिलेशंस है, ये 22 बिलियन डॉलर्स के हैं। जर्मनी भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। यूरोप और जर्मन कंपनीज चाहती है कि भारत अपनी मार्केट का एक्सेस और ओपन करें। जर्मन कंपनीज यह कहना हैं कि भारत के साथ हम अपना ट्रेड 40 50 बिलियन डॉलर ले जाना चाहते है।
जर्मनी भारत का टॉप इन्वेस्टर है। फॉरेन इन्वेस्टमेंट्स बहुत सारी इंडिया में आ रही है। जर्मन इन्वेस्टमेंट्स इंडिया में उतनी आई नहीं है। हम लोग यह चाहेंगे कि जर्मनी बिलियंस ऑफ डॉलर्स इंडिया में इन्वेस्ट करें और जर्मनी ऐसा कर सकता है। इससे भारत में बहुत ह्यूज स्केल पर जॉब्स क्रिएट होंगी।
जर्मनी का अभी के लिए मोटिव यही है कि इनके साथ मिलिट्री लॉजिस्टिक्स पैक्ट, भारत ये साइन कर ले। सबमरीन डील उनको मिल जाए।
White Paper – Focus on India
जर्मनी ने ना सिर्फ इंडिया को स्पेशल स्टेटस दिया है मिलिट्री डील्स में बलकि जर्मन पार्लियामेंट ने इंडिया को लेकर एक पूरा White Paper पास किया है। यह जो वाइट पेपर है यह जर्मनी के मिनिस्टर्स को दिया गया है। सबने इसको अप्रूव किया है और इस पेपर का नाम है “फोकस ऑन इंडिया”। इस White Paper के अंदर जर्मनी ने यह लिखा है :
India as a key partner din the Indo-pacific. The German government adopts focus on India.
इस पर इन्होंने एक पीडीएफ फाइल भी रिलीज किया है। यह पीडीएफ आप अगर पढ़ेंगे इसमे इन डिटेल बता रखा है कि जर्मनी किस तरीके से भारत के साथ सिक्योरिटी और डिफेंस पॉलिसी आगे बढ़ाने वाला है।
जर्मनी चाहता है कि यह लॉन्ग टर्म प्लान इस White Paper के अंडर कि रशिया को रिप्लेस कर दो। इंडिया का आज भी 60-65% मिलिट्री हार्डवेयर रशियन मेड है, जर्मनी चाहता है कि यहां पर कंप्लीट जर्मन कंपनीज छा जाए। आने वाले कुछ दशकों में रशियन डिफेंस कंपनीज का नामो निशान मिटा दे।
जर्मनी चाहता हैं कि इंडिया को फ्रीडम मिल जाए, इंडिया को आजादी मिल जाए रशिया से और इंडिया जर्मनी के रिलेशंस बहुत स्ट्रांग हो जाए। जर्मनी यह भी कहता है इस पेपर में जो सिविल सोसाइटीज हैं भारत की उनको भी ये मजबूत करेंगे। इसका मतलब यह है कि जर्मनी की जो फंडिंग आएगी वो बहुत सारे इंडिया में जो एनजीओस हैं, जो सिविल राइट्स एक्टिविस्ट हैं, जो काफी बार प्रोटेस्ट करते हैं, जर्मनी चाहता है कि उनके साथ जर्मनी की सरकार के रिलेशंस काफी बेहतर हो।
यह थोड़ा सा कंसर्निंग है कि जर्मनी इंडिया में करना क्या चाहता है? जो जर्मनी की सिविल सोसाइटी है और भारत की जो सिविल सोसाइटी है, ये काफी ग्रो किए हैं, काफी बुद्धिजीवी हैं जर्मनी के जो इंडिया में ज्ञान देते हैं। इंडिया से भी काफी ज्ञान लेते हैं। और यहां पे आगे लिखा है कि हम सिविल सोसाइटी एंगेजमेंट बिल्कुल ब्रॉडएन करेंगे।
“Can continue to make contribution towards strengthening our relationship. We want to expand opportunity for interaction between young people (जो जर्मनी से यंग पीपल हैं और इंडिया के जो यंग पीपल हैं उनके बीच में एक्सचेंज प्रोग्राम्स ये बढ़ाना चाहते हैं)
We want to strengthen the alumni networks of school’s higher education (कल्चर मीडिया उस सब में भी यह चाहते हैं कि इंडिया जर्मनी की कोऑपरेशन काफी हद तक बढ़े).
जर्मन गवर्नमेंट ने हमेशा लगातार यह कहा है कि रशिया की वॉर ऑफ अग्रेशन अगेंस्ट यूक्रेन और इसके ग्लोबल इंपैक्ट क्या होंगे। यह बात काफी बार ये लोग इंडियन साइड के साथ कर चुके हैं। यह जानते हैं कि इंडिया भी चाहता है कि ये वॉर खत्म हो बट एट द सेम टाइम जर्मनी यह भी चाहता है कि इंडिया एक लार्जर इंपैक्ट लाए, मतलब यह चाहते हैं कि इंडिया रशिया पे और प्रेशर डाले।
जर्मनी के चांसलर Olaf Scholz दिल्ली से गोवा के शहर वास्कोडागामा जाएंगे। वहां पर दो जर्मन की नेवल शिप्स इनका वेट कर रही होंगी। ये उन नेवल शिप्स के साथ फोटो खींचवाए, क्योंकि यह वो दो नेवल शिप्स हैं जो ताइवान स्ट्रेट के बीच से गुजरी थी। 22 सालों में पहली बार हमने देखा है कि जर्मनी ने अपनी नौसेना भेजी है जो बिल्कुल ताइवान स्टेट के बीच से गुजरी है। चाइना को चुनौती देने के बाद जर्मनी यह कहना चाहता है कि, इंडो पैसिफिक में इनकी entry हो चुकी है और इनका मेन प्रीमियर पार्टनर भारत रहने वाला है।
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